जीरो टॉलरेंस के लिए ? जिस असिस्टेंट कमिश्नर पर भ्रष्टाचार का अपराध दर्ज हुआ, उसे सरकार ने डिविजनल कमिश्नर का चार्ज दे दिया !





भोपाल/इंदौर । (राजेन्द्र के.गुप्ता 9827070242/सात्विक गुप्ता) सरकार की बदनामी करवाने वाले भ्रष्टाचार के आरोपी अफसरों पर असर क्यों नहीं होता है ? यह प्रकरण इसका जीता—जागता उदाहरण है। आलोक कुमार खरे वर्ष 2019 में सहायक आबकारी आयुक्त (असिस्टेंट कमिश्नर) इंदौर के पद पर पदस्थ थे। लोकायुक्त पुलिस ने खरे और इनकी पत्नी के खिलाफ भ्रष्टाचार अधिनियम की धाराओं में अपराध क्रमांक 238/2019 दर्ज करके, खरे के निवास सहित कई ठिकानों पर आय से अधिक संपत्ति जप्त करने के लिए छापा मारा और आय से अधिक अकूत संपत्ति जप्त की।


भ्रष्टाचारी को संरक्षण


आरोपी आबकारी एसी खरे को सरकार द्वारा निलंबित करके सख्त विभागीय कार्यवाही करना थी, जिसके उलट सरकार ने खरें को उन्हें ऊंचे पद का प्रभार दे दिया है ! अब इसे क्या कहें ? क्या ये जीरो टॉलरेंस की तैयारी है या भ्रष्टाचार को बढ़ाने, संरक्षण देने की ? जनता सब देख, समझ रही है।


नौकरी पूरी करने के अवसर दिए जा रहे है ?


भ्रष्टाचार के अपराध में आरोपी खरें को नौकरी पूरी करने के लिए, लम्बा समय देने और बचाने के लिए, पिछले दो साल से कोर्ट में चालान पेश करने की अनुमति लोकायुक्त पुलिस को नहीं दी जा रही है। इस स्थिति में बड़े और धनाढ्य अफसर जांच एजेंसी के होने और काम पर ही सवाल उठा रहे है। खरें पर केस दर्ज हुए 06 साल हुए और पिछले 02 साल से कोर्ट में चालान पेश करने की अनुमति वाणिज्यिक कर मंत्रालय के प्रमुख सचिव द्वारा जारी नहीं की जा रही है। ऐसा लगता है खरे की बची नौकरी पूरी करने के लिए, अभिमत के लिए चिठ्ठी का खेल खेला जा रहा है। सोचिए सरकार को राजस्व देने वाले वाणिज्यिक कर मंत्रालय और आबकारी कमिश्नर एक दूसरे को दो साल में संतुष्टि पूर्ण अभिमत नहीं दे पाए है, तो आम नागरिक को कितनी अवधि में निराकरण मिलता होगा ? 


पी.एस. और आबकारी आयुक्त के बीच चिट्ठी—चिट्ठी का खेल


आलोक खरें के खिलाफ कोर्ट में चालान पेश करने की अनुमति लोकायुक्त पुलिस ने वाणिज्यिक कर मंत्रालय के प्रमुख सचिव से मांगी है। जब लोकायुक्त पुलिस ने अनुमति मांगी थी, तब ईमानदार प्रमुख सचिव दीपाली रस्तोगी पदस्थ थी, अब नए ईमानदार प्रमुख सचिव अमित राठौर पदस्थ है। दोनों प्रमुख सचिव, आबकारी कमिश्नर से चालान पेश करने की अनुमति पर अभिमत मांग चुके है। पूर्व आबकारी कमिश्नर ओम प्रकाश श्रीवास्तव ने कानूनविद की तरह अभिमत दे दिया था, वर्तमान आबकारी आयुक्त अभिजीत अग्रवाल ने अपनी कलम बचाते हुए पूर्व अभिमत को ही अभिमत बताते हुए विभाग में विधि विशेषज्ञ नहीं होने की बात लिख कर, अपना अभिमत पीएस को भेज दिया। इसके बाद पीएस ने पुनः आबकारी आयुक्त को स्पष्ट अभिमत देने के लिए पत्र लिख दिया, जिस पर आबकारी आयुक्त ने पुनः पूर्व की तरह दिनांक 24/10/2024 को अभिमत पीएस को भेज दिया है। भ्रष्टाचार के आरोप में, आरोपी आलोक कुमार खरे और इनकी पत्नी के खिलाफ दर्ज अपराध क्रमांक/238/2019 में चालान पेश करने की अनुमति जारी करने के संबंध में, अब तक वाणिज्यिक कर प्रमुख सचिव और आबकारी आयुक्त, एक दूसरे को 10/01/2024 और दिनांक 02/04/2024, दिनांक 13/06/2024 और दिनांक 18/07/2024 और अब 24/10/2024 को चिट्ठी/अभिमत लिख चुके है।


ऊंचे पद पर पदस्थ कर दिया


सरकार ने भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए आरोपी एसी आलोक कुमार खरे को रीवा का प्रभारी डीसी बना कर पदस्थ किया हुआ है।जबकि जिस अधिकारी के खिलाफ अपराध दर्ज हो या विभागीय जांच चल रही हो उसे स्थानांतरण नीति और जीएडी के आदेशानुसार फील्ड में पदस्थ ही नहीं किया जा सकता है, ना ही महत्वपूर्ण कार्य दिया जा सकता है। सवाल यह भी उठता है क्या पदस्थापना और प्रभार देने से पद के अधिकार में अंतर होता है क्या ? नहीं तो फिर भ्रष्टाचार के आरोपी को सरकार उपकृत क्यों कर रही है, इन स्थितियों में भी आरोप लगते है और सरकार की बदनामी होती है। 


पीएस ने मंत्री, मुख्यमंत्री को नोटशीट नहीं लिखी


आबकारी आयुक्त और पी एस ने भी खरें को हटाने के लिए शासन, मंत्री, मुख्यमंत्री को नोट शीट नहीं लिखी, दोनो अधिकारी का अपना जमीर भी ......


न्यायपालिका के काम पर अतिक्रमण किया जा रहा है क्या ?


वर्तमान आबकारी आयुक्त ने अपने अभिमत में यह अच्छा लिखा है कि वो विधिक सलाह नहीं दे सकते है। उसके बाद भी पी एस के द्वारा अनुमति जारी नहीं करना किसी बड़े प्रभाव की तरफ इशारा कर रहा है। क्योंकि लोकायुक्त पुलिस भ्रष्टाचार की जांच करने का अधिकार और ज्ञान रखती है, लोकायुक्त पुलिस ने चालान पेश करने की अनुमति मांगी है अर्थात लोकायुक्त पुलिस ने आलोक खरें का भ्रष्टाचार पाया है। लोकायुक्त पुलिस के चालान को सही गलत बताने का निर्णय जारी करना न्यायपालिका का काम है। अब पीएस और आबकारी आयुक्त ही न्याय सिस्टम के विपरीत आलोक खरें को अपराध से बरी करने का निर्णय कैसे जारी कर सकते है ? इस तरह पूरे सिस्टम को ही अपने कब्जे में लिया जा रहा है, जो बचाव की स्थिति दिखाई दे रही है। क्या न्यायपालिका का काम भी पी एस और आबकारी आयुक्त कर रहे है ? क्योंकि यही तय कर रहे है कि लोकायुक्त जांच सही है या गलत और सजा देना है या नहीं देना है ?! घोर आश्चर्य हो रहा है, मंत्रालय और मुख्यालय के बड़े अफसर, भ्रष्ट अधिकारी को जेल जाने से बचाने के लिए पूरा सिस्टम ही खत्म करने पर तुले हुए है ।


आरोपी मजे में !


 पी एस और आबकारी आयुक्त की चिट्ठीबाजी में, आरोपी खरे मजे में है, क्योंकि जिस पद पर रहते खरे पर अपराध दर्ज हुआ है, उस पद से ऊंचे पद पर काम कर रहे है। पढ़ते रहे, गाते रहे और सोते रहे, लूटने वाले लूट कर, फिर लुट सकते है....


चंद्रावत की संपत्ति राजसात होगी


पराक्रम सिंह चंद्रावत (बिना पीएससी पास किए, संविधान के विपरीत, अनुकम्पा नियुक्ति से सीधे जिला आबकारी अधिकारी के पद पर भर्ती किए गए) के खिलाफ भी न्यायालय में प्रकरण चल रहा है, चंद्रावत और इनकी पत्नी के खिलाफ चालान पेश करने के बाद लोकायुक्त पुलिस ने एक और पूरक चालान पेश किया है, चंद्रावत की संपत्ति राजसात का प्रकरण भी अलग से चल रहा है। लोकायुक्त पुलिस चंद्रावत के जप्त 06 मोबाइल को खोल नहीं पाई है। चंद्रावत के यहां से फॉरेन करंसी और दारू की बोतलें भी जप्त हुई है। चंद्रावत के खिलाफ विजय नगर थाने में दर्ज आबकारी एक्ट के अपराध में भी सजा से बचने के लिए तमाम हथकंडे अपनाए गए थे, किंतु शासन को पुनः चालान पेश करने की अनुमति जारी करना पड़ी थी। चंद्रावत की संपत्ति राजसात होगी, जब तक बचाव के रास्ते अपनाए जा रहे है, तब तक केस आगे बढ़ रहा है...


एक अन्य अफसर की जाति पर सवाल


आबकारी विभाग के एक अपर आयुक्त जो कभी मंत्रीजी के खास रहे है, उनकी जाति की फाईल से भी धूल साफ हो रही है।

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