रियासतकालीन 1000 करोड़ की शाही पुश्तैनी संपत्तियों की फर्जी वसीयत और नामांतरण पर जनसुनवाई में आवेदन!

आवेदन में फर्जी दस्तावेजों के आधार पर, रिश्वत लेकर नामांतरण करने वाले तहसीलदार पर कड़ी कार्रवाई की मांग की गई!


     आलीराजपुर :  आलीराजपुर की गौरवशाली पहचान और रियासतकालीन शाही पुश्तैनी संपत्तियों की कथित फर्जी वसीयत का रिश्वत लेकर गलत नामांतरण करने वाले प्रभारी तहसीलदार के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने हेतु जनसुनवाई में कलेक्टर को आवेदन दिया गया। आवेदक भगवती प्रताप सिंह पिता स्व रघुवीर सिंह राठौड़ ने अपने आवेदन में लिखा कि करीब 1000 करोड़ रुपए की इस संपत्ति की फर्जी वसीयत धोखाधड़ी से बनाई गई है। इस मामले में तहसीलदार हर्षल बहरानी के खिलाफ कड़ी दंडात्मक कार्रवाई की जाए।

    




रियासत कालीन पुश्तैनी संपत्तियों की कथित फर्जी वसीयत में अनेक तकनीकी खामियां थीं इसके बाद राजस्व प्रकरण क्रमांक -0673, 669, 0670, 0674, 0467/31-6/2024-25, संपत्ति का नामांतरण दर्ज कराने के लिए लगाए सभी आवेदन के खिलाफ़ तहसील कार्यालय सहित कलेक्टर को भी आपत्तिया सौंपी गई थी।

बता दें कि उल्लेखनीय है कि आलीराजपुर रियासत के स्व. महाराज कमलेंद्र सिंह की मृत्यु 6 जुलाई 2024 को कैंसर से वड़ोदरा के भाई लाल अमीन हॉस्पिटल में हो गई थी। 91 वर्षीय कमलेंद्र सिंह कैंसर सहित अनेक बीमारियों से पीड़ित थे। उनके नाम से उनकी मृत्यु के एक माह बाद 7 अगस्त 2024 को आलीराजपुर तहसील में एक वसीयत पेश की गई थी, जिसके खिलाफ रक्त वंशज ने आपत्ति समय सीमा में पचासों दस्तावेजों के साथ करीब 300 पेपर्स के साथ प्रभारी तहसीलदार को आपत्ति दर्ज कराई थी बावजूद इसके मात्र 16 दिन में ही 9 अक्टूबर 2024 को सभी की आपत्ति तहसीलदार ने ख़ारिज कर संदिग्ध वसीयत पर नामांतरण कर दिया था।


      इन आपत्तियों में तथ्यात्मक दस्तावेजों के साथ बताया गया था कि कथित फर्जी वसीयत ग्रहिता तुषारसिंह पिता कनकसिंह निवासी राजमहल, देवगढ बारिया, दाहोद (गुजरात) एवं उसके अन्य साथियों का नामांतरण नहीं किया जाए। इस आवेदन के पक्ष में मैंने पचासों तथ्यात्मक दस्तावेजों के साथ अपनी आपत्ति पेश की थी। इसके बावजूद नायब तहसीलदार हर्षल बहरानी इस फर्जी वसीयत के आधार पर संपत्ति का नामांतरण नियम कायदों को ताक पर रख कर दिया।

      संलग्न आवेदन भी हैं कि वसीयत के निष्पादन में स्व कमलेंद्र सिंह की कोई भूमिका नहीं थी। इसे फर्जी तरीके से, धोखाधड़ी से हस्ताक्षर लेकर और कई पेपर पर फर्जी हस्ताक्षर से इस वसीयत को 

निष्पादित किया गया।


तहसीलदार ने अपने नामांतरण आदेश में यह भी उल्लेख नहीं किया कि कमलेंद्र सिंह के नाम से जो 10 स्टाम्प पेपर वसीयत में संलग्न हैं, वे उनके नाम पर खरीदे गए थे। क्योंकि, स्टाम्प विक्रेता के रजिस्टर पर जो हस्ताक्षर हैं वे भी फर्जी हैं। जबकि, आपत्ति में यह बात भी प्रमुखता से दस्तावेज पेश कर दर्ज कराई गई थी। यह कथित फर्जी वसीयत देवगढ़ बारिया (गुजरात) में बनाई गई थी, जो आलीराजपुर से बहुत दूर है जहां वसीयतकर्ता रहता था। इसके अलावा, सत्यापन करने वाले गवाह भी स्व कमलेंद्र सिंह को नहीं जानते थे। ये गवाह भी कथित वसीयत ग्रहिता तुषार सिंह के नौकर हैं।

      मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने वसीयत के आधार पर कृषि भूमि के म्यूटेशन के संबंध में उच्च न्यायालय की विभिन्न पीठों द्वारा परस्पर विरोधी निर्णयों के कारण एक बड़ी पीठ को संदर्भित करते हुए, सुरेश कुमार कैत, सीजे, सुश्रुत अरविंद धर्माधिकारी औरके विवेक जैन, जेजे की 3-न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि तहसीलदार केवल वसीयत के आधार पर म्यूटेशन आवेदन को अस्वीकार नहीं कर सकता। हालाँकि, यदि वसीयत को चुनौती दी जाती है, तो सिविल कोर्ट के निर्णय के बिना म्यूटेशन नहीं दिया जा सकता। न्यायालय ने कहा कि मप्र भू-राजस्व संहिता की धारा 109 और 110 के तहत दाखिल खारिज के आवेदनों पर विचार करते समय तहसीलदार न्यायिक या अर्ध-न्यायिक कार्य नहीं करता है, बल्कि केवल प्रशासनिक कार्य करता है। इस प्रकार, न्यायालय ने माना कि तहसीलदार के पास वसीयत या किसी अन्य शीर्षक दस्तावेज़ की प्रामाणिकता पर निर्णय लेने की क्षमता नहीं है, चाहे वह वसीयतनामा हो या गैर-वसीयतनामा। न्यायालय ने कहा कि वसीयत या शीर्षक पर किसी भी विवाद के मामले में मामले को सिविल न्यायालय को भेजा जाना चाहिए। न्यायालय ने यह भी कहा कि यदि किसी वसीयत की वास्तविकता पर कोई विवाद है, तो तहसीलदार के पास साक्ष्य लेने या उसकी वैधता तय करने का अधिकार नहीं है। इसलिए इसका निर्णय सिविल न्यायालय द्वारा किया जाना चाहिए।

     आवेदन में कहा गया कि तहसीलदार के लिए मृतक के कानूनी उत्तराधिकारियों के बारे में पूछताछ करना और उन्हें मप्र भू-राजस्व संहिता की धारा 110(4) के अनुसार नोटिस जारी करना आवश्यक है। जबकि, मृतक श्रीमंत कमलेंद्र सिंह के सगे भाई, रक्त वंशज सहित कई उत्तराधिकारी जीवित हैं। स्व कमलेंद्र सिंह के एक भाई जयेंद्र सिंह तो उच्च न्यायालय इंदौर में भी शपथ पत्र द्वारा कथित वसीयत ग्रहिता तुषार सिंह द्वारा ही पेश कराया गया है। जबकि, पटवारी पंचनामे से लेकर पूरी वसीयत और आपत्तियों के जवाब में तुषार सिंह तथा सहयोगी वसीयत ग्रहिता ने जयेंद्र सिंह का अस्तित्व तक नहीं माना था। वहीं, मैंने (आवेदक ने) अपनी आपत्ति में वंशावली भी पेश की थी, जिसमें जयेंद्र सिंह का भी अस्तित्व था। परन्तु, तहसीलदार हर्षल बहरानी ने इन्हें भी पूरी तरह नकारते हुए, किसी भी वैद्य वारिस को कोई नोटिस दिए बिना मात्र 16 दिन में करीब 1000 करोड़ की शाही संपत्तियों की वसीयत का नामांतरण कर दिया हैं। इनका एक ऑडियो कॉल भी पटवारी के साथ उच्च न्यायालय में पेश किया गया, जो सोशल मीडिया पर भी वायरल हैं। इसमें तहसीलदार हर्षल बहरानी ने रिश्वत लेकर दबाव प्रभाव में इस फर्जी वसीयत का नामांतरण करना स्वीकार किया हैं।

     यदि वसीयत या गैर-वसीयती शीर्षक दस्तावेज के संबंध में विवाद सिविल न्यायालय के समक्ष उठाया जाता है और निषेधाज्ञा प्रदान की जाती है, तो तहसीलदार को दाखिल-खारिज की कार्यवाही आगे नहीं बढ़ानी चाहिए। मामले की सूचना कलेक्टर को देनी चाहिए।

जबकि, हमारे द्वारा ही आपको (कलेक्टर महोदय) 22 सितंबर 2024 को ही सारी आपत्ति वाला आवेदन तहसीलदार हर्षल बहरानी को प्रस्तुत किया था। बावजूद इसके उच्च न्यायालय से लेकर मुख्य सचिव और सुप्रीम कोर्ट तक के सभी दिशा निर्देशों के विरुद्ध रियासत कालीन शाही पुश्तैनी संपत्तियों का गलत नामांतरण कर दिया गया।

     आवेदन में कहा गया कि उपरोक्त तथ्यों के आलोक में न्याय हित में आवश्यक कार्यवाही करने की कृपा करें। जिन राजस्व कर्मचारियों ने जान बूझकर भ्रष्टाचार कर अपनी आधिकारिक शक्तियों का दुरुपयोग कर तुषार सिंह को फायदा पहुंचाया है, उनके विरूद्ध विभागीय एव अपराधिक विधि के अंतर्गत कार्यवाही की जाए। इस आवेदन के साथ 22 सितंबर 2024 का स्व कमलेंद्र सिंह के सगे भाई जयेंद्र सिंह का शपथ पत्र भी संलग्न किया गया, जिसे कथित वसीयत ग्रहिता तुषार सिंह ने उच्च न्यायालय में पेश किया है कि वे जीवित हैं। यह भी कि उनका परिवार भी जीवित हैं।

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