वाघेला एक्सप्रेस -नीरज द्विवेदी
सोशल मीडिया पर नाराजगी
की लहर
“जहाँ रक्षक ही भक्षक
बन जाए, वहाँ रिश्तों की विश्वसनीयता दम तोड़ देती है।”
राजा रघुवंशी हत्याकांड
से जुड़ी एक और चौंकाने वाली परत अब सामने आई है। जिस बहन को भाई की मौत के बाद ग़म
में डूबा होना चाहिए था, उस पर अब यह आरोप लग रहे हैं कि वह भाई के नाम और दर्द को
सोशल मीडिया ब्रांडिंग का हथियार बना चुकी है।
एक तरफ मौत, दूसरी
तरफ मार्केटिंग?
राजा की हत्या के बाद
जब देशभर में न्याय की माँग उठ रही थी, उसी वक्त उनकी बहन सृष्टि रघुवंशी, जो कि एक
इंस्टाग्राम कंटेंट क्रिएटर हैं, अपने पेज पर पहले भावुक पोस्ट और फिर ब्यूटी प्रोडक्ट्स
के विज्ञापन और स्पा प्रमोशन करते हुए नजर आईं। उनके 4 लाख से अधिक फॉलोअर्स हैं —
और अब यूजर्स का आरोप है कि वो भाई के नाम और मौत के बहाने व्यूज, ब्रांड डील्स और
लोकप्रियता बढ़ा रही हैं।
“इंस्टाग्राम बन गया
है शोक प्रदर्शन का बाजार?”
सृष्टि द्वारा पोस्ट
किए गए वीडियोज़ और स्टोरीज़ में जहां एक ओर राजा की शादी के पुराने दृश्य दिखाए जा
रहे हैं, वहीं तुरंत बाद स्पॉन्सर्ड कंटेंट, स्किन प्रोडक्ट्स और ब्यूटी टिप्स भी चल
रहे हैं। यह विरोधाभास सोशल मीडिया यूजर्स को खटक गया।
एक यूज़र ने लिखा:
❝भाई
के ग़म में डूबी हो या अपने फॉलोअर्स गिन रही हो?❞
दूसरे ने टिप्पणी की:
❝यह
दुःख नहीं, डिजिटल ड्रामा है — शर्म करो!❞
और एक तीखा कमेंट:
❝भाई
की चिता ठंडी नहीं हुई और बहन ने इंस्टा पर प्रचार की गर्मी शुरू कर दी।❞
मूल्य और भावना का
व्यापार — नया डिजिटल संक्रमण?
एक ओर जहाँ राजा की
पत्नी सोनम पर हत्या का गंभीर आरोप है, वहीं दूसरी ओर बहन सृष्टि के व्यवहार ने लोगों
को झकझोर दिया है। क्या अब अपनों की मौत भी "पर्सनल ब्रांड" का हिस्सा बन
चुकी है?
क्या सोशल मीडिया पर
संवेदना भी मॉनिटाइज़ेबल कॉन्टेंट बन गई है?
सृष्टि की सफाई: “मैंने
न किया, तो कौन करेगा?”
जनता की नाराजगी और
आलोचना के बीच, सृष्टि ने एक सफाई वीडियो जारी किया जिसमें उन्होंने कहा –
❝लोग
जो कह रहे हैं, वो बहुत दुखद है। अगर मैंने आवाज नहीं उठाई होती, तो शायद मेरे भाई
के कातिल आज भी खुले घूम रहे होते।❞
उनका कहना है कि वे
अपने भाई के लिए न्याय की लड़ाई लड़ रही हैं और पीछे हटने वाली नहीं हैं। मगर सवाल
अब उनके इरादों पर नहीं, प्रस्तुति और नैतिकता पर उठ रहा है।
राजा रघुवंशी की मौत
ने इंदौर ही नहीं, पूरे देश को हिला दिया। और जब परिवार से उम्मीद थी कि वे दुःख और
न्याय के बीच खड़े रहेंगे, तब डिजिटल प्लेटफॉर्म पर संवेदना और प्रचार का यह टकराव
समाज के लिए आईना बन गया है।
“श्रद्धांजलि तब तक
पवित्र है, जब तक वह मंच नहीं बनती।”
इस घटना ने सिर्फ एक
भाई नहीं छीना, बल्कि समाज के रिश्तों की नीयत और नियति पर भी गंभीर प्रश्नचिन्ह लगा
दिया है।
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