राजकुमार जैन, स्वतंत्र लेखक और उस्ताद के अनन्य प्रशंसक
पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित उस्ताद जाकिर हुसैन ने सोमवार 28 जनवरी 2019 में इंदौर में आयोजित एक संगीत समारोह के लिए इंदौर आए थे। ठंडी हवाओं और कड़ाके की ठंड के बावजूद, तबला वादक ने अपने असाधारण तालवादन कौशल से इस शाम को यादगार बना दिया था। सर्द हवाओं के थपेड़े और सात डिग्री सेल्सियस की हाड़ कंपा देने वाली सर्दी के बीच विश्व विख्यात तबलावादक उस्ताद जाकिर हुसैन ने यशवंत क्लब में आयोजित म्यूजिक फेस्टिवल में अपनी प्रस्तुति दी थी। कड़ाके की ठंड का अहसास होते ही उस्ताद ने बच्चों की तरह पहले अपनी हथेलियाँ रगड़ी फिर मुंह से फूंक मारकर हाथ गरम किए और गर्म अंगुलियों से एक अनूठी स्टाईल में अपने गालों पर तबला बजाया। जिसे देखकर जनता ने तालिया बजा बजा कर अपने हाथ गरम किए थे।
किसीने उन्हे उस्ताद कहकर पुकारा तो वो बोले मुझे उस्ताद मत कहो मैं उस्ताद नहीं हूँ, आप मुझे जाकिर या जाकिर भाई कह सकते हो। क्योंकि पिताजी ने कहा था कि कभी उस्ताद मत बनाना हमेशा शागिर्द बन सीखते ही रहना। एक बार फिर तालियों की गड़गडाहट गूंज उठी थी। अपने स्वागत से अभिभूत होकर उनकी चमत्कारी उंगलियों णए तबले पर संगीत का ऐसा जादू बिखेरा कि हर थाप पर सर्दी दूर जाती नजर आई।
तबला बजाते हुए, उनकी आत्मा संगीत की लय में खो जाती थी और उनका शरीर धुन के साथ नृत्य करता प्रतीत होता था। उनको तबला बजाते हुए न सिर्फ सुनना बल्कि देखना भी एक अलौकिक और दिव्य अनुभव था। अविश्वसनीय गति से उनकी उंगलियाँ तबले पर नृत्य करती थीं, और उनकी धुनें सुनने वालों को एक नए आयाम में ले जाती थीं। निपुणता और रचनात्मकता से लबरेज उनकी संगीत यात्रा एक पवित्र नदी की तरह थी, जो अपने साथ संगीत का अमृत लेकर बहती थी। उनका संगीत एक जादू की तरह था, जो सुनने वालों को अपनी गहराई में डूबने के लिए मजबूर कर देता था।, जाकिर हुसैन का मानना था कि संगीत सीमाओं के पार लोगों को एकजुट कर सकता है। उनके अनुसार संगीत मानवता की धड़कन है - यह हमें हमारे अतीत और एक-दूसरे से जोड़ता है। वैश्विक संगीत संस्कृति पर उनका प्रभाव और भारतीय संगीत विरासत के राजदूत के रूप में उनकी भूमिका बेमिसाल रही है।
इंदौर से जुड़ी अपनी यादें साझा करते हुए उन्होंने बताया कि जब मैं 12 साल का था जब अब्बा उस्ताद अल्ला रक्खा खान के साथ एक म्यूजिक कन्सर्ट में यहां आया था इसमें पं. रविशंकर, उस्ताद अली अकबर खां, मेरे पिताजी, उस्ताद बिसमिल्लाह खान, पं. कुमार गंधर्व सहित प्रख्यात तबला वादक पं. शांता प्रसाद और पं. किशन महाराज भी मौजूद थे। कार्यक्रम के आयोजक ने अब्बा से कहा, आपका बाछा भी अच्छा बजाता है, उसे भी मौका दो। तब मेरे साथ हारमोनियम पर बैठे थे प्रसिद्ध हारमोनियम वादक अप्पा जलगांवकर। स्टेज के पास ही प्रख्यात संगीतज्ञ पं.ओंकारनाथ ठाकुर मेरा तबला सुन रहे थे।। कार्यक्रम समाप्ति पर उन्होंने जेब से पांच रुपए का नोट निकालकर मुझे आशीर्वाद दिया। यह मेरी पहली कमाई थी।
कहते हैं कि हुनर जन्मजात होता है, और उस्ताद जाकिर हुसैन अल्लारक्खा कुरैशी ने इस कहावत को अपने तबला वादन के अनोखे और अविस्मरणीय तरीके से सत्य सिद्ध किया। बोलना शुरू करने से पहले, कच्ची उम्र में घुटनों के बल रेंगते जाकिर ने घरेलू सामानों पर अपनी नन्ही अंगुलियों की थाप से लय की सहज समझ का ऐसा प्रदर्शन किया जिसे सुनकर उनके पिता, प्रसिद्ध तबला वादक उस्ताद अल्लारक्खा भी दंग रह गए। नन्हे जाकिर को घरेलू सामानों पर त्रुटिहीन ताल बजाते देखकर, उनके पिता ने सोचा नहीं होगा कि एक दिन यह बालक तबले को एक संगत वाद्य की बजाय दुनिया भर में प्रसिद्ध एकल वाद्य के रूप में ऐसी प्रसिद्धि दिलाएगा कि दुनिया भर के लोग टिकट खरीदकर सिर्फ तबला सुनने के लिए आएंगे।
भारतीय शास्त्रीय संगीत के अलावा, जाकिर हुसैन ने कई तरह की शैलियों में दूसरे देशों के जाने-माने संगीतकारों के साथ काम किया है। जिनमें हरिप्रसाद चौरसिया, पंडित रविशंकर, जॉर्ज हैरिसन, यो-यो मा, बेला फ्लेक, जॉन मैकलॉघलिन और मिकी हार्ट जैसे महान कलाकार शामिल हैं। उनकी साझेदारियों से बना संगीत सांस्कृतिक और भाषाई सीमाओं से परे था। जॉन मैकलॉघलिन के साथ फ्यूजन बैंड “शक्ति” के संस्थापक सदस्य के रूप में, उन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत को जैज़ और रॉक के साथ मिलाकर एक बिल्कुल नई शैली बनाई। उनका ग्रैमी विजेता एल्बम “प्लैनेट ड्रम” विश्व संगीत में मील का पत्थर बन गया। हुसैन ने इस अनुभव का वर्णन करते हुए कहा था कि “यह केवल संगीत नहीं था - यह संस्कृतियों के बीच वार्तालाप था, हर थाप एक कहानी बयां कर रही थी।" वो अक्सर कहा करते थे कि संगीत असीम है; जितना आप सीखते हैं, उतना ही आपको एहसास होता है कि अभी कितना कुछ और बूझना बाकी है।
16 दिसंबर सोमवार की सुबह, 73 वर्ष की आयु में उस्ताद का सैन फ्रांसिस्को के एक अस्पताल में निधन हो गया। इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस, एक पुरानी फेफड़ों की बीमारी उनकी मृत्यु का कारण बनी। उनकी मृत्यु ने कभी नया भरने वाला एक बड़ा शून्य छोड़ दिया है, लेकिन उनका संगीत उन्हें सदैव जीवित रखेगा। एक तबला वादक और भारतीय शास्त्रीय संगीत के अग्रदूत के रूप में जाकिर हुसैन की विरासत आने वाली पीढ़ियों को हमेशा प्रेरित करेगी। सर्वकालीक महान कलाकार के निधन पर उनके वैश्विक प्रशंसकों के साथ इंदौर का तबला भी जार-जार रो रहा है।
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