नीरज द्विवेदी वाघेला एक्सप्रेस
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नई दिल्ली:
अब तक यह आम धारणा थी कि यदि किसी ने जमीन या प्रॉपर्टी की रजिस्ट्री करा ली है, तो वह उस संपत्ति का मालिक बन जाता है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस सोच को बदलते हुए अपने हालिया फैसले में कहा है कि केवल रजिस्ट्री के आधार पर मालिकाना हक नहीं माना जा सकता। मालिकाना हक साबित करने के लिए अन्य दस्तावेजों की भी आवश्यकता होगी।
इस फैसले के अनुसार, यदि किसी ने जमीन या मकान की रजिस्ट्री कराई है, तो यह केवल एक बिक्री या ट्रांसफर का प्रमाण है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है यह साबित करने के लिए कि वह वास्तविक मालिक है। इसके लिए उसे मालिकाना हक के कई दस्तावेजों और साक्ष्यों को पेश करना होगा।
मालिकाना हक के लिए आवश्यक दस्तावेज:
1. म्यूटेशन ऑर्डर या रिकार्ड ऑफ…
2. सेल डीड, बयाना/बिक्री एग्रीमेंट
3. मंजूरी के नक्शे, बिल्डिंग परमिशन
4. बिजली-पानी के बिल
5. कंस्ट्रक्शन कंप्लीशन सर्टिफिकेट
6. प्रॉपर्टी टैक्स की रसीद
7. ग्राम पंचायत या नगर निगम से मिलान
8. फॉर्म 6, खतौनी, खसरा आदि भूमि रिकॉर्ड
रियल एस्टेट सेक्टर पर असर:
इस निर्णय से देशभर में हो रहे प्रॉपर्टी सौदों पर असर पड़ेगा। अब सिर्फ सेल डीड के आधार पर बैंक से लोन मिलना या प्रॉपर्टी का म्यूटेशन कराना आसान नहीं रहेगा। रियल एस्टेट डेवलपर्स को अब ग्राहकों को मालिकाना हक से संबंधित सभी दस्तावेज देना होंगे, जिससे प्रॉपर्टी की सत्यता प्रमाणित हो सके।
आम जनता पर प्रभाव:
जो लोग अब तक सिर्फ रजिस्ट्री के कागज़ लेकर खुद को मालिक मानते रहे हैं, उन्हें अब सावधान हो जाना चाहिए। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि सिर्फ पंजीकरण (रजिस्ट्री) दस्तावेज ही मालिकाना हक का अंतिम प्रमाण नहीं है। यदि अन्य दस्तावेज नहीं हैं, तो उस प्रॉपर्टी को बेचना, ट्रांसफर करना, बैंक से लोन लेना या उस पर निर्माण कराना भी मुश्किल हो सकता है।
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय ज़मीन-जायदाद से जुड़े मामलों में बड़ी पारदर्शिता लाएगा और फर्जी रजिस्ट्री या झूठे स्वामित्व के मामलों पर लगाम लगाएगा। अब खरीदारों को सतर्क रहना होगा और रजिस्ट्री के साथ-साथ सभी जरूरी दस्तावेजों की जांच कर ही कोई संपत्ति खरीदनी चाहिए।
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