नीरज द्विवेदी -वाघेला एक्सप्रेस इंदौर।
आज के समाज में एक चौंकाने वाली और बेहद गंभीर प्रवृत्ति तेजी से सामने आ रही है — बड़ी संख्या में पुरुष अब अपना जेंडर चेंज कराकर स्वयं को "महिला" के रूप में पेश कर रहे हैं। यह सिर्फ व्यक्तिगत पहचान का मामला नहीं रह गया है, बल्कि समाज, संस्कृति, और महिला अधिकारों को भी नई चुनौती देने वाला विषय बन चुका है।
🔴 क्या है इस बदलाव की वजह?
विशेषज्ञों का मानना है कि इसमें कई कारण जुड़े हो सकते हैं —
मानसिक असंतुलन या पहचान की उलझन
सामाजिक सहानुभूति पाने की चाह
कुछ मामलों में कानूनी और आर्थिक लाभ उठाने की प्रवृत्ति
लेकिन दूसरी तरफ यह सवाल भी खड़े हो रहे हैं —
क्या यह बदलाव सच में आत्म-स्वीकृति है या फिर एक नया सामाजिक छल?
🔴 महिलाओं का हक छीन रहे हैं नकली ‘महिलाएं’?
आज कई जगहों पर देखा गया है कि महिला आरक्षण, महिला वॉशरूम, महिला हॉस्टल, महिला स्पोर्ट्स आदि सुविधाओं का लाभ कुछ ऐसे लोग उठा रहे हैं जो जन्म से पुरुष थे लेकिन अब खुद को महिला घोषित कर चुके हैं।
कई असली महिलाएं अब असहज महसूस करने लगी हैं, उनका कहना है कि –
“हमारी पहचान और हक पर अब खुद पुरुष ही कब्जा करने लगे हैं।”
🔴 सरकार और कानून की चुप्पी चिंता का विषय
जहां ट्रांसजेंडर समुदाय के वास्तविक अधिकारों की रक्षा जरूरी है, वहीं नकली या स्वार्थी इरादों से जेंडर चेंज करने वालों पर अब तक कोई स्पष्ट कानूनी लगाम नहीं है।
क्या अब समय नहीं आ गया है कि इस पर खुलकर बहस हो और कोई स्पष्ट नीति बनाई जाए?
🔴 समाज किस दिशा में जा रहा है?
ये बदलाव सिर्फ व्यक्तिगत नहीं, बल्कि सामाजिक संरचना, स्त्री-पुरुष संतुलन और पारंपरिक मूल्यों पर भी असर डाल रहा है।
संस्कृति और विज्ञान के इस टकराव के बीच असली सवाल यही है —
क्या यह ‘जेंडर क्रांति’ है या ‘जेंडर भ्रम’?
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