जनता ने किया विरोध, लेकिन आईडीए बना शराब ठेकेदार का मसीहा


इंदौर विकास प्राधिकरण ने शराबखोरी को दी खुली छूट, योजना 71 में टेंडर से पहले दे दी दुकान

वाघेला विशेष -नीरज द्विवेदी 

एक ओर सरकार और प्रशासन नशा मुक्ति के लिए जागरूकता अभियान चला रहे हैं, वहीं दूसरी ओर इंदौर विकास प्राधिकरण (आईडीए) खुद ही शराबखोरी को बढ़ावा देने में लगा हुआ है। मामला है योजना क्रमांक 71 के सेक्टर-ए का, जहां पर एक सरकारी शराब दुकान को टेंडर स्वीकृत होने से पहले ही जमीन दे दी गई।

मुँह में राम बगल में छुरी 

अब सवाल यह उठता है कि किस नीति, योजना और कानून के तहत आईडीए इस तरह मनमानी कर रहा है? क्या अब सरकारी योजनाओं में शराब दुकानों के लिए भी विशेष भू-उपयोग आरक्षित किया जाएगा? शहर में अब तक भूमियों के तीन ही मुख्य उपयोग – आवासीय, व्यवसायिक और सार्वजनिक सुविधाएं (PSP) तय किए जाते रहे हैं। लेकिन इस बार शराब दुकान के लिए सीधे जमीन आवंटित कर देना कई सवाल खड़े करता है।

जनता ने किया विरोध, लेकिन आईडीए बना शराब ठेकेदार का मसीहा 

स्थानीय रहवासियों द्वारा जब विरोध किया गया, तो शराब दुकान को दूसरी जगह शिफ्ट करने की तैयारी कर ली गयी और मसीहा बना प्राधिकरण । विरोध के बावजूद बिना प्रक्रिया पूरी किए टेंडर से पहले दुकान को आरंभ करना और फिर यह तर्क देना कि "किराया तो 1 जुलाई से लिया जाएगा", सरकारी प्रक्रियाओं की धज्जियां उड़ाता है। और एक बड़ा सवाल यह भी हे की क्या इस बाबाद कोई बोर्ड संकल्प कभी पारित भी हुआ ?

सरकार के अभियान और विभाग की नीतियों में विरोधाभास

जहां एक ओर राज्य सरकार और पुलिस नशा मुक्ति के लिए बड़े-बड़े अभियान चला रही है, वहीं उसी सरकार का विभाग – इंदौर विकास प्राधिकरण – शराब को बढ़ावा देने वाले निर्णय ले रहा है। विभागीय मंत्री अक्सर नशे से दूरी की बात करते हैं, लेकिन उन्हीं के विभाग की ज़मीनी कार्यशैली ठीक उसके उलट दिख रही है।

किसानों को नहीं मिला मुआवजा, शराब के लिए जमीन कौड़ियों में दी

आईडीए पर पहले से ही आरोप हैं कि उसने किसानों से जबरन अधिग्रहण कर कई मामलों में अभी तक मुआवज़ा नहीं दिया। वहीं शराब की दुकान जैसी सामाजिक रूप से विवादास्पद चीज़ों के लिए जमीन को न सिर्फ आरक्षित कर देना, बल्कि बेहद सस्ती दरों पर दे देना, यह साबित करता है कि "माले मुफ्त, दिले बेरहम" वाली कहावत यहां सटीक बैठती है। इसके पहले भमोरी क्षेत्र में भी शराब की दुकान प्राधिकरण द्वारा लगाई जा चुकी हे। 

अब मांग यह उठ रही है कि:

  • आईडीए स्पष्ट करे कि शराब दुकान के लिए जमीन देने की क्या वैधानिक प्रक्रिया अपनाई गई?
  • क्या शहर में भविष्य में भी शराब के लिए ज़मीनें आरक्षित की जाएंगी?
  • और क्या इस तरह बिना टेंडर प्रक्रिया पूरी किए दुकान देना घोर अनियमितता नहीं है?

इस पूरे प्रकरण ने न सिर्फ इंदौर विकास प्राधिकरण की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए हैं, बल्कि सरकार के "नशा मुक्त मध्यप्रदेश" अभियान की साख पर भी बट्टा लगाया है।

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