स्कूल बसों का 'गली-जाम मॉडल': रहवासी इलाकों की तंग गलियों में ट्रैफिक का नया संकट!


स्कूल बसों का 'गली-जाम मॉडल': रहवासी इलाकों की तंग गलियों में ट्रैफिक का नया संकट!

शहर के ट्रैफिक सुधारने की बात सिर्फ़ यातायात पखवाड़े तक ही सीमित रहना भी बहुत बड़ा कारण यह।

विशेष रिपोर्ट। नीरज द्विवेदी

शहर की ट्रैफिक व्यवस्था को सुधारने के लिए रोज बैठकें होती हैं—कभी कलेक्टोरेट में, कभी निगम कार्यालय में और कभी पुलिस मुख्यालय में। लेकिन इन बैठकों का असर शहर की तंग गलियों और रिहायशी इलाकों में देखने को क्यों नहीं मिल रहा? क्या ट्रैफिक सुधार सिर्फ वीआईपी सड़कों और बायपास के लिए रह गया है?

हर गली में स्कूल बसों का अतिक्रमण!

सुबह 7 से 9 और दोपहर 1 से 3 बजे तक शहर की लगभग हर कॉलोनी की संकरी गलियों में एक जैसे दृश्य देखने को मिलते हैं। बड़ी-बड़ी स्कूल बसें, जो महज 2 या 3 बच्चों को छोड़ने आती हैं, गलियों में फंसकर बाकी पूरे मोहल्ले को जाम कर देती हैं। न नजदीक से गुजर पाना संभव है, न ही इमरजेंसी वाहनों को निकलने का रास्ता मिलता है।

शहर की परछाइयों में दम तोड़ती ट्रैफिक व्यवस्था

जब शहर के बुद्धिजीवी और जनप्रतिनिधि ट्रैफिक सुधार के नाम पर मंथन करते हैं, तब वो भूल जाते हैं कि असली संकट उन रिहायशी इलाकों में है, जहां सड़कों की चौड़ाई नहीं, बल्कि सोच की संकीर्णता जाम का कारण है। स्कूलों की परिवहन नीति ऐसी हो गई है कि हर छात्र के घर के सामने बस रुकनी चाहिए, भले ही उस गली की चौड़ाई महज़ 10 फीट ही क्यों न हो।

पालकों की जिद, प्रशासन की चुप्पी

आज के दौर में बच्चों के एडमिशन से पहले स्कूल की पढ़ाई नहीं, बल्कि बस सेवा पूछी जाती है—"क्या बस घर तक आएगी?" यह मांग पालकों की तरफ से भी अब 'स्टेटस सिंबल' बन गई है। स्कूल प्रशासन भी माता-पिता की इस डिमांड के आगे झुकते हुए हर गली में बस भेजने को मजबूर है। वहीं पुलिस और नगर निगम की आंखें इस पूरी व्यवस्था पर बंद हैं।

नीतियां बनती हैं, पालन नहीं होता

शहर में ट्रैफिक सुधार की ढेरों योजनाएं और नीतियां बनीं। प्रस्ताव भी आए कि मुख्य मार्गों पर निर्धारित स्कूल बस स्टॉप बनाए जाएं, जिनसे आगे बसें न जाएं। लेकिन यह प्रस्ताव फाइलों में ही दफन रह गया। कोई भी संस्था इसकी कड़ाई से पालन करवाने को तैयार नहीं दिखती।

बायपास का अंडरपास बन रहा है 'स्ट्रेस पास'

बात सिर्फ रहवासी गलियों की नहीं है। शहर के बायपास क्षेत्र में हर अंडरपास पर एक निश्चित समय पर भारी जाम लगना अब सामान्य बात हो गई है। स्कूल बसों के साथ निजी वाहनों और लोकल ट्रैफिक के मिलन से हालात बेकाबू हो जाते हैं।

ज़रूरत है 'ग्राउंड लेवल रिफॉर्म' की

अब समय आ गया है कि ट्रैफिक सुधार की नीतियां सिर्फ कागजों पर न रहें, बल्कि ज़मीन पर उतरें।

 स्कूलों को आदेशित किया जाए कि बसें सिर्फ चौड़ी सड़कों तक ही जाएं।

बच्चों को नजदीकी बस स्टॉप तक लाने-ले जाने की जिम्मेदारी पालकों की हो।

पुलिस और निगम द्वारा एक संयुक्त निगरानी टीम बनाई जाए, जो तंग गलियों में बसों के प्रवेश पर नियंत्रण करे।

वरना आने वाला समय और भी खतरनाक होगा, जहां गलियों में बसें होंगी, लेकिन एंबुलेंस और फायर ब्रिगेड के लिए रास्ता नहीं। यह सिर्फ ट्रैफिक का मसला नहीं, यह शहर के जीवन प्रवाह का संकट बन चुका है।

निजी स्कूल और कॉलेज जो जाम का कारण बनते है उनसे जब तक सीधे पत्राचार यातायात प्रबन्धन नहीं करेगा तब तक यह व्यवस्था आसानी से नहीं सुधर सकती और हर कॉलोनी में एक बस स्टॉप तय हो जहां अधिकांश बच्चे एकत्रित होकर बस में बैठ जाएं

क्या आपके मोहल्ले में भी स्कूल बसें रोजाना जाम का कारण बनती हैं? हमें भेजें तस्वीरें और वीडियो, ताकि प्रशासन की आंखें खुलें!

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